सोमवार, 1 अप्रैल 2013

एक रात की कमाई

प्रतीक चित्र

मई महीने की शुरूआत थी। स्कूल बैग पीठ पर लादे वह सफेद शर्ट और स्लेटी रंग की स्कर्ट में अपने उभरे हुए तन को छिपाये, बिना छत वाले बस स्टाफ पर खड़ी थी। चिलचिलाती धूप में वह पसीने से लथपथ हो चुकी। बार-बार रूमाल से चेहरे को रगड़ती वह दूर तक सड़क पर निगाह दौड़ा लेती थी। बस के जल्दी ने आने की वजह से वह काफी परेशान हो उठी। अब उसके मन में आटो से जाने का विचार पनपने लगा था किंतु पैसे बचाने की फिराक में वह कुछ देर और इंतजार कर लेना चाहती थी।
तभी एक कार आकर उसके सामने सड़क पर खड़ी हो गई। कार के भीतर एक मोटी किंतु आकर्षक नैन नक्स वाली महिला बैठी हुई थी। कार की खिड़की से इशारा करके उसने लड़की को अपने पास बुलाया। एक क्षण असमंजस में पड़ने के बाद लड़की कार के करीब गई।
‘‘कहां जाओगी बेटी।’’
‘‘कालका जी, क्या आप मुझे वहां तक छोड़ देगी।’’
‘‘हां-हां क्यों नही तभी तो बुलाया है, जाओ भीतर आ जाओ बेटी।’’ बड़े ही प्यार ओर अपनत्व से महिला ने उसे कार में बैठा लिया। कार चल पड़ी।
‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’
‘‘प्रिया।’’
‘‘कौन सी क्लास में पढ़ती हो?’’
‘‘ग्यारहवी’’
‘‘पिता जी क्या करते है?’’
‘‘जी वो.....वो..’’
‘‘हां-हां बोलो बेटी करते हैं तुम्हारे पिता जी?’’
‘‘जी वो...वो रिक्सा चलाते हैं।’’
‘‘अच्छा इसलिए बताने से हिचक रही थी।’’ महिला उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली, ‘‘बेटी कोई काम छोटा बड़ा नही होता। बस आदमी चोरी-डकैती न करे। तुम्हें असुविधा न हो तो थोड़ी देर के लिए मेरे घर चलो मेरी लडकियां तुमसे मिलकर बहुत खुश होगी। उनमें से एक-दो तो तुम्हारी ही उम्र की होगी
‘‘जी चलंूगी।’’
‘‘गुड!.. ड्राइवर गाड़ी घर की ओर ले लो।’’
थोड़ी देर बाद वह कार एक शानदार बंगले के पोर्च में जा खड़ी हुई। पहले महिला नीचे उतरी उसके पीछे वह लड़की जिसने अपना नाम प्रिया बताया था, कार से उतरकर बंगले की शोभा निहारने लगी। औरत ने उसका ध्यान भंग किया और उसे लेकर बंगले के भीतर दाखिल हुई।
वहां पहले से ही कई अन्य लड़कियां मौजूद थी। सबकी सब यूं सजी धजी थी मानो किसी वैवाहिक समारोह में शिरकत करने जा रही हों। सबकी सब बेहद खूबसूरत और सुशील दिखाई दे रही थी।
‘‘रेहाना...’’ महिला ने आवाज दी तो तत्काल एक जींस पैंट और टाप पहने युवती उसके सामने आ खड़ी हुई, ‘‘जी मम्मी।’’
‘‘बेटी यह प्रिया है, देखो कितनी थकी हुई है, इसे नाश्ता कराओ और अपना कोई कपड़ा पहनने को दे दो ताकि यह नहा कर फ्रेश महसूस कर सके।’’
‘‘जी मम्मी’’ कहकर वह युवती प्रिया की ओर घूमी, ‘‘आओ प्रिया मेरे कमरे में चलो।’’ उसने प्रिया का हाथ थामा और सीढि़या चढ़ गई।
रेहाना का कमरा बेहद सजा-धजा कमरा था। जरूरत की हर चीज वहां मौजूद थी। रेहाना ने उसे एक जोड़ी कपड़े दे दिए और गुसलखाना दिखा दिया। नहाकर वापस लौटी तो रेहाना नाश्ते पर उसका इंतजार कर रही थी। दोनों ने साथ-साथ नाश्ता करते हुए वार्तालाप भी जारी रखा। रेहाना अपनी बातों से उसका ध्यान एक खास दिशा की तरफ मोड़ना चाहती थी, जल्दी ही वह कामयाब भी हो गई, ‘‘बोलो न प्रिया क्या तुम्हारा कोई ब्वायफ्रैंड है?’’
‘‘नही मैंने यह रोग नही पाला अभी तक या यूं समझ लो कि यह सब अमरजादियों को ही शोभा देता है, वो किसी के साथ घूमें फिरें तो समाज उन्हें कुछ नही कहता जबकि गरीब लड़की को बहुत ही फंूक-फंूक कर कदम रखना पड़ता है।’’
‘‘ प्रिया ऐसा कुछ नही है। छोड़ो आओं मैं तुम्हें एक चीज दिखाऊ जो शायद तुमने पहले कभी नही देखी होगी।’’
‘‘क्या चीज?’’ प्रिया उत्सुक हो उठी, ‘‘दिखाओ तो जरा।’’
रेहाना एक एलबम उठा लाई। पहले फोटो पर निगाहें पड़ते ही प्रिया बिदक सी गई्र, ‘‘छी....कितनी गंदी तस्वीर है।’’
‘‘अभी आगे देखो मेरी जान...’’ प्रिया को अपनी बांहों में समेटती हुई्र रेहाना बोली, ‘‘आगे की तस्वीर देखकर तुम होश खो बैठोगी।’’
प्रतीक चित्र
और सचमुच उस तस्वीर को देखकर प्रिया भीतर तक गुदगुदा उठी, एक अजीव सी सिरहन उसके तन में ब्याप्त हो गई, आंखें एकदम से गुलाबी हो उठी। रेहाना उसके चेहरे के मनोभवों पर तीखी नजर रखे हुए थी, ज्योही उसने प्रिया के चेहरे पर हया देखी उसको कसकर सीने से लगा लिया ओर उसके उभारों को सहलाने लगी। अपने शरीर के नाजुक हिस्सों पर रेहाना की उंगलियों को एहसास पाकर प्रिया को एक अद्यभुत आनंद की प्राप्ति होने लगी। उसके समस्त शरीर में एक अजीब सा तनाव व्याप्त हो गया, अंग-प्रत्यंग में एक अनचाही भूख पैदा होने लगी। रेहाना उसके शरीर को जितना मसलती-रगड़ती उतनी ही उसके भीतर की कामना बढ़ती जाती। एक वक्त वह भी आया जब प्रिया खुद भी रेहाना के खिले हुए यौवन को सहलाने लगी। दोनों काफी देर तक यूं ही लिपटा-झपटी करते रहीं और जब अलग हुई तो पसीने से लथपथ बुरी तरह हांफ रही थी।
‘‘मजा आया?’’ रेहाना उसके कान में फुसफुसाई
‘‘हां! कहकर प्रिया ने शरमाकर आंखें बंद कर ली।’’
‘‘तुम अगर आज रात यहीं रूक जाओ, या कल फिर आने को वादा करो तो मैं तुम्हारे लिए इससे भी ज्यादा मजा का इंतजाम कर सकती हूं, बोलो रूकोगी रात भर।’’
‘‘हां।’’ कहकर प्रिया रेहाना से लिपट गई।
आघे घंटे बाद महिला उनके कमरे में दाखिल हुई।
‘‘मम्मी आज रात प्रिया हमारे साथ रहेगी, आप इसके लिए खास इंतजाम कर दो, यह तैयार है।’’
‘‘गुड अब तुम इसे हमारा बंगला घुमा दो और शाम होते ही इसका श्रृंगार कर देना, बड़ी प्यारी बच्ची है।’’ महिला चली गई।
रेहाना प्रिया को लेकर बंगले में विचरने लगी। कुछ बंद कमरों के पीछे से स्त्राी-पुरूष की उत्तेजित सिसकियां सुनाई दे रही थी, मगर प्रिया ने उस तरफ कोई ध्यान नही दिया। शाम घिरते ही रेहाना ने उसे दुल्हन की तरह सजा दिया। रात को उसे एक अंजान युवक के साथ कमरे में बंद कर दिया गया। युवक रात भर उसक तन को नोचता-खसोटता रहा और सुबह होने से पूर्व ही दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया। प्रिया के अंग अंग से टीसें निकल रही थी, उस युवक ने पूरा बदन तोड़कर रख दिया था अब उसमे इतना भी साहस नही था कि वह उठकर कपड़े पहन सके अतः उसी हालत में गहरी नींद के हवाले हो गई।
सुबह जब उसकी आंख खुली तो रेहाना नाश्ते की टेª लिए उसके सामने खड़ी मुस्करा रही थी। प्रिया उठकर झटपट नित्यकर्मो से फारिग हुई और नाश्ता करके महिला के पास पहंुची।
‘‘बेटी तुम सचमुच बहुत प्यारी हो, बहुत अच्छा काम किया है तुमने, जब दिल हो आ जाया करना, यह लो तुम्हारा ईनाम पांच सौ रूपए।’’
‘‘मगर....’’ प्रिया तुनककर बोली, ‘‘यह तो बहुत कम है। इतना तो मैं घंटा भर में कमा लेती हूं पूरी रात के कम से कम दो हजार तो होने ही चाहिए।’’

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