शनिवार, 30 मार्च 2013

हवस का भूत


प्रतीक चित्र

कमल ने धड़कते दिल और उत्तेजना के अतिरेक से, कांपते हाथों से रमिया का हाथ पकड़ लिया जब उसने कोई विरोध नहीं किया तो वे रोमांचित हो उसे अपनी तरफ खींचने लगे। झिझकते हुए रमिया उनके इतने नजदीक आ गई कि उसकी गर्म सांसे उन्हें महसूस होने लगी। कमल ने उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में भरते हुए अपनी तरफ किया और उसकी बड़ी-बड़ी आॅखों में झांकने लगे। रमिया ने लजाते हुए पलकें झुका लीं पर छूटने की कोशिश नहीं की। अप्रत्यक्ष प्रोत्साहन पाकर कमले ने अपने कपकपाते ओठ उसके उभरे कपोल पर रखा दिए, तब भी रमिया ने कोई विरोध नहीं प्रदर्शित किया तो उन्होने उसे एक झटका देकर बिस्तर पर गिरा अपने आगोश में ले लिया। एक हल्की सी सीत्कार रमिया के मंुह से निकल गई।
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई तो कमल की नींद खुल गई। देखा तो बिस्तर पर वे और उनकी तनहाई के अलावा उनके साथ कोई नहीं था। वे बुदबुदा उठे..... अभी ही आना था किसी को.... थोड़ी देर और नही रूक सकते थे। वे घड़ी देखकर मुस्करा दिए। सुबह हो चुकी थी। दोबारा दस्तक हुई तो उन्होंने उठकर दरवाजा खोल दिया। सामने सोनू खड़ा था अभिवादन करते हुए उसने पूछा, ‘‘अंकलजी, आंटी कब तक आएंगी? मम्मी पूछ रही है।’’
‘‘दो महीने बाद’’ कमल ने बताया।
‘‘थैक्यू अंकल’’ कहते हुए सोनू चला गया तो कमल भी अंदर आ गए।
जबसे उनकी पत्नी ललिता, लंबे समय से मायके गई थी वे बहुत अकेलापन महसूस कर रहे थे। शादी के दस वर्षो बाद भगवान ने उनकी सुनी थी। उनकी पत्नी गर्भवती हुई थी। वे कोई जोखिम नही उठाना चाहते थे इसलिए दो महीने पहले ही ललिता को मायके छोड़ आए थे। पिछले माह ही एक बालक ने जन्म लिया था। जच्चा-बच्चा के कमजोर होने के कारण उनकी सास ने फरमान जारी कर दिया था कि बच्चे के तीन महीने का होने तक वे ललिता को नहीं भेजेंगी। फलस्वरूप कमल इस वक्त ‘‘फोसर््ड-बॅचलर’’ का जीवन व्यतीत कर रहे थे।
पिछले कुछ दिनों से उनका चंचल मन अपने घर काम करने वाली रमिया पर आया हुआ था। युवा रमिया के आकर्षक नयन-नक्श और गदराए यौवन ने उनके रातों की नींद और दिन का चैन हराम कर दिया था। अब जब उनकी पत्नी भी साथ नहीं थी, रमिया का शरीर पाने के लिए वे अधीर हो उठे थे। कमल जानते थे रमिया बहुत गरीब है। कई घरों में काम कर के बड़ी मुश्किल से अपना घर चलाती है। आदमी मतकमाउ है और पत्नी की कमाई पर ऐश करना चाहता है। पैसा ही रमिया की सबसे बड़ी कमजोरी होगी और उसी के सहारे रमिया को पाया जो सकता है। कमल का सोचना था कि पैसे के लोभ में अच्छे-अच्छों का ईमान-चरित्रा डगमगा जाता है फिर रमिया की क्या औकात कि उन्हें हाथ न रखने दे.... हालांकि ललिता के रहते कभी उन्होंने रमिया की ओर आॅख उठाकर भी नहीे देखा था।
प्रतीक चित्र
मन ही मन कोई शातिर योजना बनाकर वे रमिया के आने की प्रतिक्षा करने लगे। जैसे ही रमिया आई वे अपने बिस्तर पर लेट गए। रमिया अंदर जाकर काम करने लगी। जब कमल को लगा कि अब काम खत्म होने को होगा उन्होंने आवाज दी, ‘‘रमिया....जरा सुनो तो....’’
‘‘जी बाबूजी....’’ रमिया साड़ी के पल्लू से हाथ पोछती आ खड़ी हुई।
‘‘काम हो गया?’’
‘‘जी बाबूजी....’’
‘‘इधर आओ मेरे पास’’ कमल ने कहा।
रमिया उनके सिरहाने आकर खड़ी हो गई, ‘‘क्या बात है बाबूजी?’’
‘‘सिरदर्द हो रहा है थोड़ा दबा सकती हो?’’ कमल ने कापती आवाज में पूछा।
रमिया घबरा गई, ‘‘मैं.....?’’
‘‘हां भाई! अब घर में तो कोई और नहीं है’’ कमल ने विवशता दर्शाते हुए कहा,
झिझकते हुए रमिया उनके माथे को आहिस्ता-आहिस्ता दबाने-सहलाने लगी। रमिया के ठण्डे कोमल हाथों का स्पर्श पाते ही कमल का पूरा शरीर उत्तेजना से ऐसे झनझनाने लगा जैसे विद्युत प्रवाहित बिजली का नंगा तार छू गया हो। टूटते हुए शब्दों में सहानुभूति घोलते हुए वह पूछने लगे, ‘‘रमिया तुम इतनी मेहनत करती हो फिर भी बड़ी मुश्किल से गुजारा होता होगा न?’’
‘‘क्या करें बाबूजी मेरा मरद काम नहीं करता इसलिए तंगी होती है।’’ रमिया बोली।
‘‘तुम्हारा आदमी काम क्यों नहीं करता? क्या बीमार रहता है?’’ कमल ने पूछा।
‘‘वह तो खूब हट्टा कट्टा-मुस्टंडा है पर.....अब क्या बताउं बाबूजी नहीं बता सकती....’’ सकुचातें हुए रमिया चुप हो गई।
‘‘कितनी आमदनी हो जाती है तुम्हारी?’’ कमल ने पूछा।
‘‘एक हजार रुपए..... बस बाबूजी?’’ रमिया कमल के सिर से हाथ हटाते हुए बोली।
कमल ने तत्परता से कहा, ‘‘थोड़ा और दबा दे, अच्छा लग रहा है। औरत के हाथों में तो जादू होता हैं। एक बात बताओ रमिया! इतने कम पैसों में तुम्हारा घर कैसे चलता होगा?’’
रमिया खामोश रही तो कमल फिर बोले, ‘‘अगर इतने समय और काम में तुम्हें पंद्रह सौ रुपए मिलने लगे तो कैसा लगेगा?’’
रमिया मुस्करा उठी, ‘‘लगेगा तो अच्छा पर कौन देगा?’’
‘‘मैं दूगा’’ घड़कते दिल से कमल ने कहा और अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया, ‘‘अगर तुम चाहोगी तो मैं इससे भी ज्यादा दे सकता हॅंू।’’
प्रतीक चित्र
रमिया उनके चेहरे को आश्चर्य से देखने लगी। इस अप्रत्याशित दया की क्या वजह हो सकती है? उसने पूछा, ‘‘आप क्यों देगें बाबूजी?’’
कमल, रमिया को अपनी ओर खींचते हुए बोले, ‘‘रमिया मैं तुम्हारे सारे दुख दूर कर दूंगा, तुम्हारी गरीबी भी....तुम्हें गहने-कपड़ों से लाद दूंगा...बस मुझे तुम्हारा थोड़ा सा प्यार चाहिए....तुम्हारे साथ थोड़ी मौज-मस्ती चाहिए।’’
‘‘बीवीजी को पता लगेगा तो?’’ रमिया ने शंका व्यक्त की।
‘‘कैसे पता लगेगा? ऐसी बात कोई किसी को बताता है क्या?’’ कमल ने आश्वासन दिया। उनकी सांसे और शब्द बेकाबू हो चले थे।
‘‘मैं तैयार हूं पर मेरी एक शर्त है....’’ रमिया ने कहना चाहा, तो कमल ने उसे बोलने नहीं दिया, ‘‘अरे तुम तैयार हो तो.... मुझे तुम्हारी एक क्या सभी शर्ते मंजूर हेैं, बस मुझे खुश कर दिया करो।’’
‘‘पहले मेरी बात तो सुन लो बाबूजी....’’ रमिया थोड़ा रूखे लहजे से बोली।
कमल के सब्र का बांध टूट रहा था, वह उखडते स्वर में बोले, ‘‘चल जल्दी बता अब मुझसे रहा नहीं जाता....’’
‘‘दरअसल मेरे मरद को कोई बीमारी नहीं है...वह भी आपके समान आशिक मिजाज है। उसका दिल भी एक थाली से नही भरता.... वह यहां-वहां ताक-झांक करता रहता है। मुझे तो लगता है, सारी मरदजात एक सी होती है।’’
रमिया की बात से कमल खिसिया गए पर उन पर तो हवस का भूत सवार था। इसलिए वह कड़वी बात हजम करते बोले, ‘‘चल छोड़ कहा की बात ले बैठी, क्यों रंग में भंग कर रही है?’’
अपना हाथ छुड़ाने का प्रयास करते हुए रमिया बोली, ‘‘पहले मेरीे बात तो सुन लो। मेरी एक ही शर्त है.... जिस दिन आप मुझे बुलाएगें, उस दिन बीवीजी को मेरे मरद के पास भेजना पड़ेगा।’’
कमल तैश में आते हुए बोले, ‘‘जानती हो यह क्या कह रही हो तुम?’’
‘‘अदला-बदली की बात कह रही हूॅ। आपको क्या लगता है हम गरीबों की इज्जत इतनी सस्ती हो ती है कि कोई भी खरीद ले। अरे आप तो पांच सौ ज्यादा देने को कह रहें हैं। मैं आपको हजार रुपए महीना दंूगी.... इस हाथ दे उस हाथ ले.... क्यों बाबूजी?’’
कमल डांटते हुए बोले, ‘‘कैसी बातें कर रही है.... तुम छोटे लोगों की यही आदत खराब होती है कि अपनी औकात भूल जाते हो।’’
रमिया पूरी तरह से अलग हो आॅख दिखाते हुए बोली, ‘‘मैं तो आपकी औकात परख रही हूॅ बाबूजी!’’
कमल की इश्क का भूत अब पूरी तरह से उतर चुका था। ठंडा पसीना पोंछते, खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे की तर्ज पर कभी अपने को कभी जाती हुई रमिया को देख रहे थे।

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