शुक्रवार, 22 मार्च 2013

पाक रिश्तों की जलायी होली

‘‘भाई-बहन के अनैतिक प्यार की कहानी’’
प्रतीक चित्र
यौवन के व्रक्ष पर खूबसूरती के फूल खिले हो तो मंजर किसी कयामात से कम नही होता। यही हाल था मीना का, यूं तो खूबसूरती उसे कुदरत ने जन्म से तोहफे में बख्शी थी, लेकिन अब जब उसने लड़कपन के पड़ाव को पार यौवन की बहार में कदम रखा तो उसकी खूबसूरती संभाले नहीं सम्भल रही थी।
वह आईना देखती तो जैसे आईना भी खुद पर गर्व करता। उसकी सांस थम जाती और वह दुनिया में खूबसूरती के उदाहरण चांद को भी नसीहत दे डालता, ‘‘ऐ चांद, खुद पर न कर इतना गुरूर। तुझ पर तो दाग है। मगर मेरे वजूद में जो चांद सिमटा है, वह बेदाग है।’’
मीना मुस्कराती तो लगता जैसे गुलाब का फूल सूरज की पहली किरण से मिलते हुए मुस्करा रहा है। अक्सर उसकी सहेलियां इस पर उसे टोक देतीं, ‘‘ऐसे मत मुस्कराया कर मीना, अगर किसी मनचले भंवरे ने देख लिया तो बेचारा जान से चला जाएगा।’’
वक्त गुजरता रहा इसी बीच एक दिन मीना रात में बाथरूम के लिए उठी तो उसने लाइट जलाई। बाथरूम करके जब वह वापस आई तो अनायास शंकर पर उसकी नजर पड़ी। शंकर उसका भाई है। वह टांगे पसारकर बेसुध सोया था और उस समय उसके शरीर पर सिर्फ एक जांघिया था।
मीना उसे एक-दो पल देखती रही तो उसके जिस्म में सिर से पांव तक एक झुरझुरी सी दौड़ने लगी। ऐसा अनुभव उसे पहले कभी नहीं हुआ था। उसके लिए यह बड़ा मीठा और अकल्पनीय अनुभव था। पता नही क्यों, मीना को शंकर की खुली टांगे अच्छी लगने लगी। वह एकटक उसकी मांसल टांगो के इर्द-गिर्द अपनी नजर फिराती रही तो उसके शरीर में दौड़ने वाली वह मीठी-सी झुरझुरी बढ़ती ही चली गयी।
मीना के विवेकी मन ने उसे एक झटका-सा दिया, नहीं यह सब गलत है, तुम अपने भाई को गलत नजर से देख रही हो। पर तभी उसके इस विचार को उसके अविवेकी मन ने दबा दिया। वह संज्ञा शून्य-सी होने लगी। उसे लगा कि वह अपना संयम खोती जा रही है।
किशोरावस्था की यह विडंबना होती है कि जो विचार मन में उठता है। वह किसी ज्वार की तरह उठता है। वह सही-गलत, आगे-पीछे कुछ नहीं देखता। बस अपनी उफनती चाल में सब कुछ बहा ले जाता है।
मीना भी किशोर मन के कुविचार के एक बवंडर में आ फंसी थी। अब उसे अपना भाई शंकर नहीं दिखाई पड़ रहा था, बल्कि उसकी जगह यौवन से खिला एक पुरूष शरीर दिखाई पड़ रहा था। बस यही वह समय था, जब मीना के मन में आये कुविचार ने उसके अंदर एक तूफान मचा दिया। एक ऐसा तूफान जो सारी हदों-मर्यादाओं और रिश्तों को उखाड़ फेंकने पर आमादा हो गया।
मीना अब खलिस मीना नहीं रही थी । वह उस विरह-पीडि़त हिरणी की तरह हो गयी थी जिसके काम का ताप उसके शरीर को झुलसाता-तड़पाता रहा और मन भटकता रहता है। मीना भी अब पूरी तौर पर भटक चुकी थी।
मीना शंकर की अधखुली देह को निहारते-निहारते वहीं बैठ गयी। फिर उसके हाथ ने हरकत की और वह शंकर की चिकनी टांग पर फिसलने लगा। शंकर अब भी नींद में बंसुध पड़ा था। कुछ ही देर मे मीना का हाथ कुछ आगे बढ़कर शंकर के पुरुषांग पर पहुंच गया। मीना की अंगुलियां जब उस पर फिरने लगीं तो शंकर की छठी इंद्रिय जागी और उसकी नींद उचट गयी।
आंख खुली तो शंकर ने अपनी दीदी को अजीब हरकत करते देखा। वह एक झटके में उठ बैठा और बोला, ‘‘यह क्या कर रही हो?’’
‘‘चुप रहो, दीपक सुन लेगा।’’ मीना ने उसे हौले से झिड़की दी और अपनी हरकत जारी रखी।
शंकर भी किशोर उम्र की पगडंडी से गुजर रहा था। उसके तन-मन में भी भूचाल आने लगा और फिर कुछ देर में ही उसके सोचने-समझने की शक्ति जवाब दे गयी। उसे अब न केवल मीना की हरकत अच्छी लगने लगी बल्कि उसके हाथ भी मीना के कोमल जिस्म में फिसलने लगे।
इसके बाद तो उस अंधेरी रात में वे दोनो एक ऐसा गुनाह कर बैठे, जिसने भाई-बहन के पवित्र रिश्तें को जलाकर खाक कर दिया।
एक बार उन दोनों ने पाप के कुंड में डुबकी क्या लगायी कि अब हर रात उनका मन यह सब करने को मचलने लगा। हर रात वे भाई-बहन के पाक रिश्तें की होली जलाकर उसे नापाक करते रहे। लेकिन अब तक परिवार में उनके शर्मनाक संबंधों की भनक किसी को भी नही लग पाई थी।
वक्त गुजरता रहा इसी बीच एक दिन रात मे जब दोनों भाई-बहन अपने पवित्र रिश्तें को कलंकित करने के अभियान में तल्लीन थे, तभी पानी पीने के लिए कमरे से बाहर आई मीना की मां मेनका ने मीना की सिसकारियां सुन ली। उसने बच्चों के कमरे में आकर जब लाइट जलाई तो वहां का शर्मनाक मंजर देखकर उनकी आंखें फटी रह गयीं।
मां द्वारा रंगे हाथ पकड़े जाने से दोनों एक-दूसरे से अलग हो गये और कपड़े पहनने लगे।
कुछ देर तक तो मेनका को जैसे काठ मार गया, और उसका क्रोध सातवें आसमान में जा पहुंचा, ‘‘निर्लज्जों, तुम दोनों ने इस दुनिया का सबसे बड़ा पाप किया है। तुम्हारा यह पाप यह धरती न जाने कैसे झेल पाई। तुम्हारा यह घिनौना गुनाह देखकर आसमान क्यों नही फटा, और तुम्हारा यह पाप देखकर मेरी कोख में कीड़े क्यों नही पड़ गये।’’
‘‘हमें माफ कर दो मम्मी, हमसे गलती हो गई।’’ मीना ने सिर झुकाते हुए कहा।
‘‘गलतीअरे इस गलती को तो भगवान भी माफ नहीं करेगा। होने दो सुबह, तुम्हारे पापा को सब कुछ बताऊॅगी मैं। कल लोग जब यह जानेंगे कि तुम दोनों ने भाई-बहन के पवित्र रिश्तें पर थूककर मुंह काला किया है, तो वे तुम जैसे भाई-बहन को जन्म देना ही बंद कर देंगे।’’ फिर मेनका अपने कमरे में चली गयी।
प्रतीक चित्र
मीना और शंकर एक-दूसरे को भयभीत नजरों से देखने लगे।
‘‘तू बाथरूम गई थी, दरवाजा बंद करना क्यों भूल गई। वही हुआ न, जिसका डर था।’’ शंकर मीना पर बरसने लगा, ‘‘कल सुबह मम्मी पापा को यह बात बतायेगी, शाम तक पूरे इलाके में बात फैल जाएगी, फिर न जाने क्या होगा।’’
‘‘सुबह होने से पहले हमें कुछ सोचना पड़ेगा, वरना हम कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे।’’ मीना ने परेशान लहजे में कहा।
‘‘बस एक ही रास्ता है।’’
‘‘कौन सा रास्ता?’’
‘‘हमारे राज को सिर्फ मम्मी जानती है, इसलिए हमें सुबह होने से पहले मम्मी का मुंह बंद करना होगा।’’
‘‘यानी मम्मी का खून।’’ मीना कांप उठी।
‘‘हां, गुनाह हमने किया और सजा मम्मी को भोगनी पड़ेगी।’’ शंकर की आंखो में दर्द छलक आया, ‘‘मम्मी भी तो गुनहगार है, हम जैसी संतान को पैदा करना भी तो गुनाह ही है। मम्मी को इस गुनाह की सजा जरूर मिलनी चाहिए।’’
फिर शंकर ने आलमारी में रखा एक बैग खोलकर लम्बे फलवाला चाकू निकाला और अपने कमरे से बाहर निकलकर मेनका के कमरे मे चला गया। मेनका लाइट जलाकर ही सोती थी। शंकर डबडबाई आंखों से कुछ पल गहरी नींद में सो रही मेनका को देखता रहा, फिर बड़बड़ाया, ‘‘काश! तुमने हमारा पाप नहीं देखा होता तो हम तुम्हारे खून से अपने हाथ कभी न रंगते मम्मी। अगले जन्म में हम जैसी पापी संतान को पैदा मत करना।’’
फिर शंकर ने बाएं हाथ से गहरी नींद में सो रही मेनका का मुंह पूरी ताकत से दबा दिया और दाएं हाथ में थामे चाकू से उसके चेहरे और गले में ताबड़तोड़ वार करने लगा। उसने कई वार मेनका के पेट पर भी किए। काफी देर तक खून से लिथड़ी मेनका तड़पती रही। फिर जब उसके प्राण शरीर से जुदा हो गए तो शंकर ने उसकी लाश को घसीटकर फर्श पर डाल दिया। उस वक्त उसके शरीर पर सिर्फ जांघिया ही था, जिस पर खून लग चुका था।
‘‘ततूने सचमुच ही मम्मी का खून कर दिया?’’ मीना ने हैरत से आंखे फैलाकर पूछा।
‘‘हां।’’ शंकर ने सपाट लहजे में कहा।
‘‘सुबह पापा लाश देखेंगे तब।’’
‘‘तब की तब देखी जाएगी।’’
उस वक्त रात के डेढ़ बज रहे थे। खून से सना चाकू मेज पर रखने के बाद शंकर बेड पर लेटकर सोने का उपक्रम करने लगा, मगर जिस बेटे के हाथ अपनी मां के खून से रंगे हों, भला उसे नींद कहां आती!
हर सुबह मेनका छः बजे के आसपास चाय बनाकर सभी को ‘बेड-टी’ देती थी, मगर उस सुबह सात बजे तक भी मेनका चाय बनाकर नहीं लाई तो विजय दुकान से बाहर निकलकर मेनका के कमरे में गया। वहां मेनका की लाश देखकर उसके होश फाख्ता हो गये। वह दूसरे कमरे मे अपने बच्चों को जगाने गया तो वहां मेजपर खून से सना चाकू तथा शंकर के जांघिए पर खून लगा देख वह समझ गया कि मेनका का खून शंकर ने ही किया है। विजय शंकर पर टूट पड़ा, ‘‘कमीने, क्यों मारा अपनी मां को तूनेक्या दुश्मनी थी तेरी उससे?’’
शंकर और मीना रोने लगे। फिर उन दोनों ने सारी हरकत बयान कर दी। हकीकत सुनकर विजय अपना माथा पीटने लगा।
‘‘मैं और तुम्हारी मम्मी तो भूल ही गये थे कि तुम दोनों जवान हो गये हो। तुम्हें एक साथ नहीं सोने देना चाहिए था। गलती तुम्हारी नही, हमारी सोच की थी। हमे क्या पता था कि जमाना इतना बदल गया है कि भाई-बहन हीखैर! मेनका तो गई। अब मैं नही चाहता कि भांडा फूटे और तुम दोनो जेल जाओ।’’
फिर विजय ने दोनों को समझाया कि पुलिस जब उनसे पूछताछ करे तो उन्हें क्या कहना है और क्या नहीं कहना है। इसके बाद विजय ने फोन कर पुलिस नियंत्रण कक्ष को अपनी पत्नी का कत्ल होने की सूचना दे दी।
जांच शुरू हुई कुछ ही देर मे सच्चाई पुलिस के सामने आ गई तब जांच अधिकारी ने विजय की निशानशानदेही पर मकान की छत पर रखी पानी की टंकी के पास से खून सना, शंकर का जांघिया और हत्या में प्रयुक्त चाकू बरामद करने के बाद विजय, शंकर और मीना को गिरफ्तार कर लिया।
अगले दिन विजय को हत्या के सुबूत छिपाने व हत्यारों को बचाने के जुर्म में तथा मीना एवं शंकर को योजना बनाकर हत्या करने के जुर्म में कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया।

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