रविवार, 24 फ़रवरी 2013

“कमली बदचलन नहीं है”

बुड़ापें में शादी का परिणाम


कमली ने दरवाजे की फांक से ही झाककर देख लिया था- बाहर धरमराज था. फिर भी दरवाजा खोलने पर उसे देखते ही ऐसी चौंकी, जैसे चोरी करते हुए रंगें हाथों पकड़ ली गर्इ हो. छुर्इ मुर्इ होकर बोली, हाय राम! तुम हो..... इतनी देर से पूछ रही हू, बोल भी नहीं सकते थे कि मैं हू..........
धरमराज ने भीतर आते हुए पूछा, क्या बात है चाची, मेरा आना आपको अच्छा नहीं लगा? बोलते-बोलते धरमराज की नजर कमली पर पड़ी तो वह ठगा-सा ताकता ही रह गया.
कमली शायद उस समय नहा रही थी और यही कारण था कि वह उस समय साड़ी के नीचे कुछ भी नहीं पहन रखा था. छाती पर चिपके हुए गीले आंचल से झाकते पुष्ट उरोजों की मादकता ने उस समय धरमराज को जैसे मदहोश कर दिया. वह और सब कुछ भूल कर फटी-फटी आखों से एकटक कमली को देखता ही रह गया.
धरमराज का यूं एकटक देखते कमली को लगा जैसे उसकी छाती पर कुछ रेंगने लगा हो. वह एक अजीब रोमांच से गनगना उठी. गर्दन तिरछी करके कनखी से ताकते हुए उसने कृत्रिम रोष से डांटा, इस तरह एकटक क्या ताक रहे हो. बड़े बेशर्म हो तुम....... बैठो, मैं अभी नहाकर आती हू....... तुम्हारे दरवाजा ठक-ठकाने से मैं बीच में ही उठ कर दरवाजा खोलने चली आयी थी.........
इतना कहकर कमली पुन: नहाने के लिए घर में ही बने स्नानघर की तरफ जाने को मुड़ी ही थी कि धरमराज ने उसका हाथ पकड़कर रोक लिया. उस समय धरमराज की आखे लाल सुर्ख हो रही थी और सारा शरीर उत्तेजना के मारे कांपा जा रहा था. उसने आव न देखा ताव तुरन्त कमली को अपनी बाहों में जकड़ता हुआ बोला, जो नहाना था वह तुम नहा चुकी हो, अब मैं तुम्हें नहलाऊगा.....
कमली सिकुड़ती हुर्इ बोली, बड़े बेशर्म हो जी तुम, हटो मुझे कपड़े तो पहन लेने दो....
जल्दी क्या है? फिर पहन लेना कपड़े. इतनी गर्मी है, थोड़ी देर ऐसे ही बदन ठण्डा तो होने दो..... फिर जो स्नान हम करायेंगे उसमें कपड़ों का क्या काम? कहते-कहते धरमराज ने कमली को जोर से भींच लिया और उसके पुष्ट उन्नत उरोजों से खिलवाड़ करने लगा तो कमली और दिखावा नहीं कर सकी. उत्तेजना से सिसियाकर उसकी छाती में नाखून धंसाती हुर्इ बोली, क्या कर रहे हो तुम? अभी कोर्इ आ गया तो..... बदनामी होते देर नहीं लगेगी.....
आएगा कैसे....... मैंने तो दरवाजे पर पहले ही अंदर से कुण्डी लगा दी है. 
यानी तुम्हारी नीयत पहले से ही खराब थी.
मेरा दोष नहीं है चाची. मेरी नीयत डिगाने वाली भी तो तुम ही हो.
बात सच भी थी. कमली के पति मास्टर विधाधर दूबे का एक विवाह पहले ही हो चुका था. उनकी पहली पत्नी जानकी देवी के बहुत दिनों तक जब कोर्इ संतान नहीं हुर्इ, तब वह दूसरा विवाह करने का पूरा मन बना चुके थे, लेकिन उन्हीं दिनों शादी के 8 वर्ष बाद अचानक जानकी देवी गर्भवती हो गयी तो मास्टर साहब के मन की बात मन में ही रह गयी.
कहते है संयोग टाले नहीं टलता. उनका बेटा मनोज 10 साल का ही हुआ था कि अचानक जानकी देवी बीमार पड़ी और चल बसीं. उस समय घर-गृहस्थी और बनाने-खाने की समस्या सामने आ गयी. मास्टर विधाधर दूबे कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि कैसे क्या करें, बेटे मनोज की उम्र भी अभी काफी कम थी. लेकिन अड़ोसी-पड़ोसी दूसरा ब्याह करने की राय देने लगे तो उन्होंने एक पल भी देर नहीं लगार्इ और 25 साल की कमली को दूल्हन बनाकर घर लिवा लाये. उस समय दूबे जी की उम्र 43 को पार कर चुकी थी. हिन्दू धर्म ग्रन्थों में कन्या-दूना वर चल जाता है, लेकिन वास्तविक जीवन में इसकी निरर्थकता तो कोर्इ कमली से पूछे.
दिन भर स्कूल में पढ़ाने के बाद कुछ ट्युशन भी निपटाकर मास्टर विधाधर दूबे थके-मांदे घर लौटते हैं तो यौवन से उमड़ती 25 वर्षीया रूपसी पत्नी को देखते ही उनकी आखें चमक उठती. कभी-कभी तो वह कमली को देखते ही इतने बेताब हो उठते कि खाने-पीने तक का भी इंतजार करना उनके लिए मुश्किल  हो जाता है. मास्टर विधाधर दूबे आतुर भाव से कमली को अपने पास खींच लेते और भूखे बालक की तरह मचलने लगते. कमली कितना भी ना-ना करती रहे, लेकिन मास्टर विधाधर दूबे मनुहार कर-करके उसके तन से एक-एक कपड़ा उतार देते और कहते, भगवान ने तुम्हें इतना रूप-यौवन दिया है तो एक बार मुझे इसे जी भरकर देख लेने दो...
फिर दूबे जी कमली के निर्वसन देह पर उसी तरह से हाथ फेरते जैसे कोर्इ गाय को दूहने से पूर्व उसके बदन पर हाथ फिराता है. लेकिन दूबेजी को उतना धैर्य नहीं था जितना धैर्य होना चाहिए था. कमली के निर्वसन देह पर हाथ फिराते-फिराते अचानक व्याकुल होकर उस पर टूट पड़ते है, लेकिन पल भर बाद ही उनका अधेड़ पौरूष रूपसी कमली के यौवन का ताप ज्यादा देर नहीं झेल पाता था. कुछ ही क्षणों की छेड़खानी और क्रिया-कलापों के बाद दूबे जी पस्त होकर एक ओर लुढ़क जाते. फिर उन्हें जाने कब गहरी नींद घेर लेती. लेकिन अतृप्त कामनाओें की ज्वाला से तड़पड़ाती हुर्इ कमली कभी-कभी सारी रात करवट बदलती ही रह जाती है. हरदम लगता है जैसे शरीर में चीटिंया रेंग रही हों.
कमली बदचलन नहीं है, लेकिन मन की तड़प ने तन की भूख मिटाने के लिए उसे रास्ता बदलने को मजबूर कर दिया. धरमराज मास्टर विधाधर दूबे का शिष्य रह चुका था. उसी श्रद्धावश वह अक्सर उनसे बातें करने आ जाया करता और गाव के नाते कमली को चाची कहकर सम्बोधित करता था. लेकिन कमली ने लुभाना शुरू किया तो धरमराज को समझते देर नहीं लगी कि अधेड़ मास्टरजी कमली के तन की प्यास मिटाने में सर्वथा असमर्थ है, इसलिए कमली का मन चंचल होकर भटक रहा था. धरमराज का मन उसका उपभोग करने के लिए ललक उठा.
आखिर उस दिन मौका मिल ही गया. कमली नहा रही थी तभी धरमराज आ पहुचा. कमली ने जानबूझकर गीले कपड़ों में दरवाजा खोल दिया, फिर तो जो कुछ हुआ उसमें कमली की पूरी तरह रजामंदी थी.
उस दिन वासना का जो खेल शुरू हुआ तो इसका सिलसिला बढ़ता ही गया. तनिक भी अवसर पाते ही कमली तथा धरमराज एक हो जाते और वासना के समुंदर में डूबने-उतराने लगते.
बहुत दिनों तक कमली और धरमराज निर्विध्न रूप से प्रेम और वासना का खेल खेलते रहे, पर एक दिन अचानक मास्टर विधाधर दूबे के लड़के मनोज ने उन दोनों को आपतितजनक हालत में देख लिया तो, वह एकदम क्रोध से तड़प उठा, तुम यह क्या कर रही हो, नयी मा? मैं अभी जाकर पिताजी से सारी बात बताता हू.
मनोज दौड़ता हुआ बाहर निकल गया. सीधे स्कूल में जाकर उसने अपने पिता को सारी बात बतार्इ तो मास्टर विधाधर दूबे को एकाएक विश्वास ही नहीं हुआ, फिर वह पैर पटकते हुए घर पहुचे तो बाहर दरवाजे पर ताला झूल रहा था. उन्होंने धरमराज के घर जाकर पूछा, तब पता चला कि वह भी लापता है. शाम होते-होते पूरे इलाके में खबर फैल गयी, मास्टर विधाधर दूबे की दूसरी पत्नी कमली धरमराज के साथ भाग गयी.
लेकिन किसी को ताज्जुब नहीं हुआ. जैसे सब पहले से ही जानते रहे हो कि मास्टर जी ने ढलती उम्र में इतनी जवान लड़की के साथ घर बसाया है तो एक दिन यह तो होना ही था.
(माडल चित्रों का कहानी से कोई सम्बन्ध नहीं हैं)
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