बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

‘जब प्रेमी लगे प्यारा’


वासना हत्या कथा
गायत्री
उस दिन दोपहर में चैका-बर्तन से निवृत्त होकर गायत्री नहाने बैठी थी कि गिरधारी आ पहुॅचा। उसकी आवाज सुनकर गायत्री स्नानघर से ही बोली, ''हां-हां, बैठो। मैं अभी नहाकर आती हूॅ।''
गिरधारी की नसों में खून सनसना उठा। दूसरी ओर गायत्री भी ऐसे ही किसी मौके की ताक में थी। उसने क्षण भर बाद आवाज दी, ''
तुम्हारे बगल की खॅूटी पर मेरी साड़ी टंगी है जरा मेरी साड़ी उतार कर मुझे दे दो।''
क्षण भर रूक कर गिरधारी जब खूॅटी से साड़ी उतार कर देने गया तो गायत्री ने पूछा, ''बाहर वाला दरवाजा बंद कर दिया है न ?''
गिरधारी ने गायत्री के कहने पर फौरन ही बाहर वाला दरवाजा बंद कर दिया। तब तक गायत्री
स्नानघर से बाहर निकल आई और गीले बाल निचोड़ने लगी। उस समय वह सिर्फ पेटीकोट-ब्लाउज में थी, अतः उसका अर्द्धनग्न उत्तेजक यौवन देखते ही गिरधारी आपा खो बैठा। उसने एकदम झपटकर गायत्री को बांहों में भींच लिया और उन्मत्त भाव से उसे प्यार करने लगा तो गायत्री को लगा जैसे जीवन में पहली बार किसी पुरूष का संसर्ग मिल रहा हो। विह्नल भाव से वह गिरधारी की चैड़ी छाती में दुबक गई।
फिर जैसे तूफान आया गिरधारी और गायत्री एक-दूसरे से समा गए। गायत्री की उम्र 28 वर्ष थी जबकि उसका पति जग्गू 45 साल का था। खेती बाड़ी का काम निबटाकर जग्गू रात में खा-पीकर खाट पर लुढ़क जाता और खर्राटे भरने लगता था। यौवन से लबालब भरी गायत्री जलती रहती थी, मगर गिरधारी से मिले नैसर्गिक यौन-सुख को पाकर गायत्री निहाल सी हो गई और वह दिन-रात गिरधारी की बांहों में समाने के अवसर तलाश करने लगी।
गिरधारी का भी लगभग यही हाल था। यद्यपि अभी उसकी शादी नहीं हुई थी और केवल शादी की बात ही चल रही थी, पर जो सुख उसे गायत्री के संपर्क में मिला, वह उसकी पत्नी कभी दे पाएगी या नहीं यह भविष्य के गर्भ में था। यही सोच-सोचकर गिरधारी अपनी शादी की बात भूलकर गायत्री के रूप यौवन का रसपान करने लगा।
गायत्री चार बच्चों की मां बन गई, लेकिन गिरधारी के साथ उसका संबंध वैसा ही बना रहा, अतः उसके आते ही वह बच्चों को पैसे देकर बाहर भेज देती, फिर निश्चित होकर गिरधारी के साथ मौज-मजा करने लगती।

लल्लन
दरअसल गिरधारी सोनभद्र जनपद में करमा थानान्तर्गत सिधोरागाॅव का रहने वाला था। गिरधारी के पड़ोस में ही गायत्री का मकान था इस कारण दोनों एक दूसरे से परिचित थे। एकही गाॅव और पड़ोस में रहने के कारण दोनों में अक्सर भेंट मुलाकात हो जाया करती, इस भेंट मुलाकात में आगे चलकर गिरधारी के मन में गायत्री के प्रति प्रेम का भाव पैदा कर दिया और वह उसे दिल से चाहने लगा, कुछ ऐसा ही हाल गायत्री का था और वह भी मन ही मन गिरधारी को चाहने लगी। लेकिन भाग्य को शायद उन दोनों का प्रेम स्वीकार नहीं था। न तो गायत्री और न ही गिरधारी ने खुलकर कभी एक दूसरे से अपने प्रेम का इजहार किया कि वे एक दूसरे को कहाॅ तक चाहते है। गायत्री के प्रेम से बेखबर उसके पिता ने सयानी होती बेटी गायत्री की शादी की बात चलाई और घर - वर पसंद आ जाने पर उसकी शादी भी कर दी और गायत्री विदा होकर अपने ससुराल पहुॅच गयी, उसकी सारी चाहत दिल में ही रह गई। यह मात्र संयोग कहें या ऊपर वाले का कोई खेल गिरधारी की शादी की बात भी ड़ेढ साल बाद गायत्री की ही ससुराल पटवारी गाॅव में चली तो उसे गायत्री से सम्पर्क बढ़ाने का जैसे भगवान ने मौका दे दिया हो और वह आये दिन किसी न किसी बहाने से अपनी होने वाली ससुराल जाने के बहाने गायत्री के पति जग्गू के घर पहुॅचने लगा। इसी आने-जाने में एक दिन गिरधारी ने आखिर सालों से दबी अपने मन की बात गायत्री के सामने खोलकर रख ही दी। दरअसल गायत्री की शादी जग्गू के साथ ऐसे हालात में हुई थी कि वह चाह कर भी कोई विरोध नहीं कर पायी थी। उस दिन जो कुछ हुआ वह पहले से ही दोनों का सोचा हुआ घटित हो गया। 

गायत्री का बड़ा बेटा मंगल 11 वर्ष का हो चला था। एकांत पाने के लिए गायत्री चाहती कि मंगल घर से बाहर ही रहे तो अच्छा हो। इसके लिए वह उसे जेब खर्च भी दे देती। परिणामस्वरूप वह मां की बात ज्यादा मानता।
उस रात जग्गू आंगन में सोया था, तब अचानक उसके पीठ में दर्द होने लगा। उसने सोचा अंदर जाकर पत्नी को जगा ले और उससे कहे तेल गरम करके लगा दे, ताकि सुबह तक उसको आराम मिल जाए। लेकिन कमरे के दरवाजे पर पहुॅचते ही पत्नी के खिलाखिलाकर हंसने की आवाज सुनाई दी तो वह ठिठक गया। विस्मय से उसने दरवाजे की फांक से अंदर झांका तो देखा-गायत्री और गिरधारी एक-दूसरे से लिपटे उन्मुक्त भाव से हंसी-ठट्ठा कर रहे थे। दूसरे ही क्षण उसका खून खौल उठा और तड़प कर दरवाजे पर पैर से प्रहार करता गरज उठा, ''दरवाजा खोल हरामजादी! नहीं तो तोड़ दूॅगा .......।''
आवाज सुनकर दोनों चैंके तो, पर तभी अचानक दरवाजा खोलकर गिरधारी ने जग्गू का मुंह दबोच लिया और गुर्रा पड़ा, ''ज्यादा पड़-पड़ाओ मत जग्गू भइया..... बदनामी तुम्हारी ही होगी। मेरा क्या ? मैं तो यहाॅ से चुपचाप खिसक जाऊॅगा।''
''बदनामी का ही डर होता तो बुढ़ापे में शादी न करते''
गायत्री ने उपेक्षा से सिर झटक कर कहा, ''हूॅ! जब तुम कुछ कर नहीं सकते तो शोर क्यों मचाते हो ? चुपचाप जाकर सो जाओ, वरना ज्यादा हो-हल्ला किया तो मैं अभी गिरधारी के साथ अपने मायके चली जाऊंगी और लोगांे के पूछने पर कह दूॅगी मेरे पति ने हम दोनों भाई-बहन को बेइज्जत करके घर से निकाल दिया है....।''
गायत्री का यह रवैया देखकर जग्गू खून का घंूट पीकर रह गया। लेकिन जग्गू का इस तरह खामोश रह जाना भी गिरधारी और गायत्री को कचोटने लगा। गायत्री को यह भी डर लगा कि अगर जग्गू ने बाद में सचमुच बेइज्जत करके निकाल दिया तो वह फिर कहीं की न रह जायेगी। गिरधारी कहने को तो मुंह बोला भाई है लेकिन गिरधारी भी तो उसे तत्काल अपने घर में नहीं रख सकेगा। आखिर बदनामी से बचने और गिरधारी से निर्द्धन्द्व संबंध बनाये रखने के लिए उसे एक ही उपाय समझ में आया क्यों न जग्गू को ही रास्ते से हटा दिया जाए ?
गायत्री ने इस संबंध में गिरधारी से बात की तो वह भी तुरन्त तैयार हो गया। इसके बाद उसका ध्यान अपने बड़े बेटे मंगल की ओर गया। कहने लगी, अगर लालच देकर उसको भी इस साजिश में शामिल कर लिया जाए तो वह कभी भी हम दोनों के खिलाफ मुंह नहीं खोल सकेगा और काम भी आसानी से हो जायेगा; लेकिन गिरधारी ने तुरंत बात काट दी और बोला, ''जब तुम साथ देने को तैयार हो तो फिर मंगल का क्या काम है ? कुछ भी हो मंगल है तो जग्गू का बेटा ही न जाने कब वह कोई बात मुंह से निकाल दे तो हमें और तुम्हें फॅसते देर नहीं लगेगी। बस, तुम किसी भी तरह इतना करो कि जब हम इस घटना को अंजाम दे तो वह घर पर न रहे या तो उसे अपने मायके भेज दो या फिर एक दो दिन के लिए किसी रिश्तेदारी में......।''
और गायत्री ने वैसा ही किया। शाम को मंगल घर लौटा तो उसने बड़ी होशियारी से उसे एक काम के बहाने से अपने मायके अर्थात् उसके ननिहाल भेज दिया और पट्टी पढ़ा दिया कि तेरे पिता की कुछ तबियत ठीक नहीं लग रही है इसलिए तुम नानी के गाॅव में रहने वाले वैद्य जी से उनका हाल बताकर दवा लेकर कल शाम तक लौट आना। मंगल अपने नानी के घर चला गया इसके बाद गायत्री ने फटाफट सारी तैयार कर ली।
उस रोज भी जग्गू रात करीब दस बजे खा-पीकर आंगन में ही सो गया, पर गायत्री और गिरधारी मौके के इंतजार में जागते रहे। आखिर जब उन्हें विश्वास हो गया कि जग्गू गहरी नींद सो गया है, तब करीब ग्यारह बजे वे दबे पांव आंगन में आए और पलक झपकते उसके मुंह पर तकिया रख गिरधारी अपनी भरपूर ताकत से दबाने लगा। दम घुटने के कारण जग्गू छटपटाने लगा तो गायत्री बड़ी बेरहमी से अपने पति के शरीर पर चढ़ बैठी। परिणामस्वरूप पांच-सात मिनट बाद ही जग्गू हमेशा-हमेशा के लिए शांत हो गया।
जग्गू
गायत्री और गिरधारी ने रास्ते का रोड़ा तो हटा दिया, लेकिन योजना के अनुसार लाश को ले जाकर चुपचाप जलाने की हिम्मत नहीं पड़ी, तब विचार-विमर्श करके दोनों ने एक योजना बनायी और अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के उद्देश्य से गिरधारी उसी रात गायत्री के घर से बाहर चला गया और गायत्री भोर में योजनानुसार जग्गू की लाश दरवाजे पर रख दी और सबेरा होते ही गायत्री नाटक करती हुई हाहाकार करने लगी, ''मैं कहती थी, ठीक से दवा-दारू करो। लेकिन यह माने तब न, पता नहीं कैसी दवा उठा लाए। खाते ही तबियत और खराब हो गई ..... और चल बसे। मेरी तो दुनिया उजड़ गई। अनाथ हो गई मैं और वह हूं.....हूं......हूं....कर दहाड़ मारकर रोने लगी।''
उस समय दिन के लगभग 8 बजे थे। लल्लन चैकीदार लपकता हुआ जग्गू के घर पहुॅचा तो वहाॅ सचमुच भीड़ लगी थी और लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे। वह भी यहाॅ-वहाॅ घुसकर मामले का पता लगाता रहा, फिर जैसे ही उसे पता चला कि अभी तक किसी ने थाने में खबर नहीं दी है तो उसे तुरन्त अपने फर्ज का भान हुआ, वह जग्गू का नजदीकी दोस्त भी था इसलिए बिना देर किये जग्गू की मौत की खबर थानेदार को दे दी।
यह 15 फरवरी की बात है। लल्लन चैकीदार से अपने थाना क्षेत्र में हुए इस हत्याकाण्ड की खबर पाते ही थाना प्रभारी एम0पी0 कुमार ने जग्गू की मौत को संदिग्ध मानते हुए अज्ञात अभियुक्तों के खिलाफ एक रिपोर्ट दर्ज कर सब इंस्पेक्टर माधो चरण, कांस्टेबल प्रभु दयाल शर्मा, शिव गोपाल कुशवाहा, मधुसूदन पाण्डेय तथा ड्राइवर शिव मोहन सिंह को साथ लेकर जांच-पड़ताल के लिए घटनास्थल की ओर रवाना हो गये।
पुलिस जनों के घटनास्थल पर पहुॅचते ही वहाॅ जुटी भीड़ काई की तरह फट गई। थाना प्रभारी एम0पी0 कुमार ने बारीकी से लाश का मुआयना किया। लेकिन मृतक के शरीर पर कहीं चोट या खून का कोई निशान नहीं मिला, जिससे यह पता चलता कि उसकी हत्या कैसे हुई है ? अतः आवश्यक जांच-पड़ताल के बाद उन्होंने शव को पोस्टमार्टम हेतु जिला अस्पताल भेज दिया।
शाम को पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई। जिसमें मृत्यु का कारण दम घुटना बताया गया था, अतः श्री कुमार ने पूर्व में दर्ज रिपोर्ट में भारतीय दण्ड विधान की धारा 302 और जोड़ दिया और इसकी जाॅच की जिम्मेदारी वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश पर स्वयं सम्भाल ली।
यद्यपि हत्यारों ने घटनास्थल पर कोई सूत्र नहीं छोड़ा था, फिर भी श्री कुमार निराश नहीं हुए। उन्होंने जांच-पड़ताल के सिलसिले में सबसे पहले मृतक जग्गू की पत्नी से ही पूछताछ की, ''तुम लोगों की किसी से दुश्मनी या कोई झगड़ा तो नहीं था ?''
''नहीं साहब!''
जग्गू की पत्नी ने तपाक से जवाब दिया, ''वह तो बहुत सीधे-सादे आदमी थे। उन्होंने किसी से 'रे'
तक करके बात नहीं की, फिर झगड़ा क्यों करते .......''
''
लेकिन बिना कारण तो कोई किसी की हत्या करेगा नहीं। खैर, तुम अभी जाओ.....।''
थाना प्रभारी एम0पी0 कुमार ने गमगीन माहौल को देखते हुए उस समय ज्यादा पूछताछ करना मुनासिब नहीं समझा और परिवारजनों को जग्गू का अन्तिम संस्कार करने का पूरा समय दे दिया इसके बाद अगले दिन भी उन्होंने कोई भी खोद-विनोद नहीं किया बल्कि अपने तरीके से गुपचुप ढंग से पता लगाने लगे कि इस हत्या का मूल कारण क्या हो सकता है आखिर उनके एक विश्वस्त मुखबिर ने उन्हंे जो कुछ बताया उसे सुनकर चैंक पड़े कि जग्गू की पत्नी गायत्री का चरित्र अच्छा नहीं है और वह अपने मायके के पड़ोसी मुंह बाले भाई गिरधारी से बहुत मेल-जोल रखे हुए थी। बातों-ही-बातों में श्री कुमार ने यह भी पता लगा लिया कि गिरधारी की शादी की बात जग्गू की ही रिश्तेदारी में चल रही थी इसलिए बराबर मिलने-जुलने के बहाने यहाॅ आता रहता था।
यह सुनते ही श्री कुमार का सारा ध्यान घटनास्थल पर जा टिका। उस समय गायत्री अपने पति के शव पर सिर पटक-पटक कर रो जरूर रही थी, लेकिन उसकी आॅखों में आंसू का कतरा भी नहीं दिखाई पड़ा था। यद्यपि उन्हें उसी समय यह बात खटकी थी, पर वह मृतक की पत्नी थी, इसलिए ठीक से सोचे-समझे बिना उन्होंने कोई धारणा बनानी उचित नहीं समझा।
लेकिन अब गिरधारी के साथ गायत्री के मधुर संबंधों की बात सुनते ही श्री कुमार समझ गए कि दाल में कुछ काला है। अतः उन्होंने तुरंत ही एक सिपाही को भेजकर गायत्री को थाने बुलवा लिया और लगे पूछताछ करने, ''तुम्हारे कितने बच्चे हैं। ?''
''चार।''
गायत्री ने तुरंत जवाब दिया, ''एक बेटा और तीन बेटियां, साहब!''
''क्या-क्या नाम हैं उनके ?''
''बड़े बेटे मंगल से तो आप मिल ही चुके हैं। उससे छोटी रजनी, सुनीता और बीना हैं।''
''हूॅ.... और अपने पति के साथ तुम्हारा व्यवहार कैसा था ?''
गिरधारी
''व्यवहार ? व्यवहार तो मेरा वैसा ही था जैसे दूसरे आदमी-औरत रखते हैं......।''
''मेरा मतलब तुम दोनों में कभी लड़ाई-झगड़ा तो नहीं हुआ ?''
श्री कुमार ने ध्यान से गायत्री के चेहरे को देखते हुए पूछा, ''देखो, मुझसे झूठ मत बोलना, वरना ठीक नहीं होगा।''
''झूठ क्यों बोलूंगी, साहब!''
गायत्री सिटपिटा गई। आंखें चुराती हुई बोली, ''रही बात मियां-बीबी के लड़ाई-झगड़े की तो वह किस घर में नहीं होता।''
''घटना से पहले भी तुम दोनों में झगड़ा हुआ था ?''
''नहीं तो .........ऐसी कोई बात तो नहीं हुई थी, साहब! बल्कि जिस रात यह विपत्ति टूटी, उस रात वह कहीं घूमने गये थे। मैं बड़ी देर तक उनकी बाट निहारती रही, फिर थक कर जाने कब सो गई। इसके बाद सबेरे जागी तो दरवाजा खोलते ही देखा, वह बाहर मरे पड़े थे .... मेरी तो दुनिया सूनी हो गई।''
''लेकिन मुझे मालुम हुआ है उस समय तुम कुछ और ही राग अलापती कह रही थीं कि जग्गू पता नहीं कैसी दवा उठा लाया था खाते ही उसकी तबियत और बिगड़ गई और वह मर गया।''
''हां....।''
गायत्री आंचल में मुंह छिपाकर फिर सिसकने लगी तो थाना प्रभारी श्री कुमार डपट पड़े, ''अब ज्यादा त्रिया-चरित्र दिखाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि मैं सब कुछ पता लगा चुका हूॅ। तुम्हारे पड़ोसियों ने तो यह भी बता दिया है कि उस शाम तुम दोनों में झगड़ा भी हुआ था।''
यद्यपि थाना प्रभारी श्री कुमार ने अंधेरे में ही तीर मारा था, पर वह एकदम सही निशाने पर जा लगा। गायत्री हड़बड़ा कर बोली, ''लोगों का क्या, कुछ भी बोलें ? जब मेरी उनकी कोई लड़ाई हुई ही नहीं तो डर कैसा ? वह तो बीच में गिरधारी ........।''
''हां-हां बोलो। गिरधारी ही के बारे में तो जानना चाहता हूं, मैं।''
थाना प्रभारी श्री कुमार ने गरज कर पूछा, ''जल्दी बता, कौन है वह ?''
''व....वह मेरे भाई जैसा है .....।''
''भाई जैसा....? इसका मतलब तुम्हारा कोई और संबंध हैं ? उसके साथ''
गायत्री का चेहरा फक् पड़ गया। डर के मारे वह थर-थर कांपने लगी, फिर भी उसने ढिठाई से जवाब दिया, ''और क्या संबंध होगा, साहब! सगा नहीं है तो क्या ? मानता तो वह सगे की ही तरह।''
''मगर गिरधारी ने तो कुछ और ही रिश्ता बताया है।''
श्री कुमार ने फिर अंधेरे में तीर छोडा़, ''कल हम उसे पकड़ कर थाने लाए थे तब उसने सब कुछ बता दिया। अब भलाई इसी में है कि तुम भी सच-सच बता दो। तुम औरत हो, इसलिए हम तुम्हारे साथ गिरधारी की तरह सख्ती से पेश नहीं आयेंगे, बल्कि सही-सही बता दो तो शायद हम तुम्हारी कुछ मदद ही कर दें। वैसे उसने तो सारा भेद उगल ही दिया है.....''
श्री कुमार की बातों से गायत्री का मनोबल टूट गया, फिर उसने सहज ही आरोप स्वीकार कर लिया। अभी तक वह गायत्री से सच उगलवाने के लिए गिरधारी की गिरफ्तारी की बात झूठ-मूठ में कह रहे थे, लेकिन उसका सनसनीखेज बयान सुनते ही श्री कुमार ने छापा मारकर उसी दिन 18 फरवरी की शाम पांच बजे गिरधारी को टूटहे नाला के पास से दबोच लिया।
फिर उसका भी बयान दर्ज करके अगले दिन 19 फरवरी 2012 को गायत्री के साथ गिरधारी को भी सम्बन्धित न्यायालय में पेश किया, जहाॅ से उन दोनों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। पुलिस जल्द ही जाॅच पड़ताल पूरी करके अदालत में चार्जशीट प्रस्तुत करने की तैयारी कर रही है।
(कथा पुलिस से प्राप्त तथ्य, घटनास्थल से ली गयी जानकारी एवं मीडिया सूत्रों पर आधारित है।)

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